मोदी फैक्टर में फिर फंसी भाजपा
गुवाहाटी,१२ मार्च। बिहार में तो नीतीश कुमार अड गए थे, लेकिन असम में भाजपा का ही एक धडा विरोध के स्वर बोलने लगा है। चुनाव समिति में यह चर्चा जोर पकड रही है कि बिहार से सीख लेते हुए नरेन्द्र मोदी को यहां नहीं लाया जाए। ताकि पार्टी को बिहार का परिणाम यहां हासिल करने में सफलता मिल सके। बिहार के चुनाव परिणाम से उत्साहित भाजपा के नेताओं को लगता है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के न बुलाने से अल्पसंख्यक वोट मिल पाएगा। वहीं दूसरे धडा का मानना है कि हिन्दूवादी छवि वाले नरेन्द्र मोदी हिन्दू मतों को बढाने में सहायक होंगे। साथ ही वे एक विकास पुरुष के रूप में प्रदेश के मतदाताओं के सामने पार्टी की एक विकास परक छवि को पेश कर सकेंगे। इस धडे का यह भी मानना है कि यदि नरेन्द्र मोदी चुनावी प्रचार में उतरते हैं तो वे बंटे हुए हिन्दू मतदाताओं को प्रभावित कर पाएंगे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि नरेन्द्र मोदी खासकर युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं और विकास की राह देख रहें प्रदेश के युवाओं को वे आकर्षित कर पाएंगे। क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की सभा में काफी भीड उमरती थी और इस भीड में अधिकांश युवा शामिल थे।इस संबंध में संघ से जुडे एक नेता से यह पूछने पर कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में उतारना क्या आत्म घाती नहीं होगा तो उनका कहना था कि इस प्रदेश में सिर्फ नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओं की जरुरत है। ताकि हिन्दूवाद को जगाया जा सके। उनका यह भी कहना था कि बंग्लादेशी घुसपैठ,सत्रों की जमीन पर घुसपैठियों का कब्जा, खुली सीमा, ईसाई मिशनरियों का बढता प्रभाव और मतदाता सूची और जनसंख्या में आश्चर्यजनक बढोत्तरी इस प्रदेश पर आने वाले संकट की ओर इशारा करता है और यदि भाजपा अल्पसंख्यक मतों के पीछे दौडती है तो यह कदम उनके लिए आत्मघाती बन जाएगा। उनका कहना था कि बिहार की कहानी कुछ और थी और वहां पार्टी की जीत इसलिए नहीं हुई कि नरेन्द्र मोदी नहीं गए , बल्कि सचाई यह है कि मोदी के न जाने से वोटों में और इजाफा होता।
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