गुरुवार, 29 सितंबर 2011

ममत्व

: भट्टाचार्यअनुवाद : नीरज कुमार झापोखरि पड सँ हरभंगनि घर लौटि गेली। कछेर पर गामक लोक ठसमठस छल। पाइन मेंमाछ केतेक छै, इ गामक लोकनकि लेल कोनो मुद्दा नई छल, परंच पूरा गाम पानिउपछ में लागल छल, इ पैघ बात छलैक। हरभंगिया बेसी देरि पोखरक भीड पर ठाडिनइ भऽ सकैत छल। एक तऽ अबेर होई छलै दोसर गाभिन बकरिक चिंता।केहनो मजबूत जउर स बान्हि कऽ ओकरा रोकनाई संभव कहां छैक, टाइट में सऽमुंह निकालि गुटुर-गुटुर तकैत हैतै। दु दिन बाद बधा देतै । पेट में बधाछैक एहि बातक ओकरा कहां छै चिंता। ओकर चालि-चलन अखन ओहने छैक जेहन नठाकऽ। गला में ढोलना कि पृथ्वी पर एहन कोनो दीवारि नई छै जे ओकरा नाच सऽरोक सकइय। लोकक जे नोकसान करै छै से कहाँ सँ भरवै?विवाहक बाद हरभंगा गांव स अएला के बादे सऽ बुढिया हरभंगिया बइन गेल छल।एक दिन नातिक उमडक एक टा छौडा आबि कऽ हाड।पांजरि तोइड देबक धमकी देनेछलै। माथ में तेल ध क बुढिया सुतऽ चलि गेल।एक बेर रहमत तेलिया बेटाक हाथे बकरी कऽ बेची देने छलैक, गला में रस्सीबांधि लय गेल छलै। मुदा दुइए दिन बाद हरभंगियाक दुआरि पर हाजिर भऽ गेल। भोरबा में बकरीक खुरक आवाज कान में पडलै। विछावन पर सँ आंिख मिचैत ओसारापरि ठारि भेल। हं, हं , वा छै ,वा नटिनिया। मुंह में पानक डांट चिबबैतबकरी सामने ठारि छल।पान केकरा खेतक खैलकै एकर ओकरा कोनो चिंता नई छलै। पानक झाडि कङ्खहरभंगनिक नजरि कोनो गुरुत्व नहि देलकै। दु दिन पहिने जै बकरी कऽ गांव सँभगेने छल ऊ बकरी ओकरा सामने छलै । गनि-गनि कऽ बकरीक पैसा लेने छलै। आब तएकरा कसाइए हाथ में जाएके लिखल छै। आखिर दोसरक उपराग केते सहलजैतै।बुढिया दौरि क बारि में गेल आ देखैए कि सौंसे में पानक डांट-पातछिडियाएल अई।बकरी पानक पात खाए लेल जीऊ लपलपैने छल, कि ततबे में बुढिया अपन पूरा कूबत लगा कङ्ख बकरीक मुंह पर एक थप्पडि जइर देलक। बकरीक आंखि बंद भङ्ख गेल आलोर टपकए लागल। बुढिया अपन ढील पडैत कपडा कऽ कसैत ढाठ दिस दौडल, ओई में सङ्ख एक टा बांस खोलि बकरीक ऊपर ताइन देलक। लेकिन बकरीक लेल धनो सन।बुढिया गारि पढैत जेना झाडू, बारन्हि या बेलना सङ्ख मारै छलै ,किछुओहिना ऊ अपनि पीठि ओइर मुंह नीचा क लेलक । बकरीक पीठि देखी बुढिया कऽमारल नई गेलै।बकरीक मुंह देखी बुढियाक ज्वाला खत्म भङ्ख गेल छलै। हाथकबांस आ छता ओतहि पटकि बुढिया भानस घर दिस चलि देलक।टीप-टीप पाइन परि रहल छलै। लेकिन आई बकरी के पानिक कोनो असर नइ छलै।बकरी आ बिलाई मेघक दुईटा बुंदो बर्दास्त नइ कङ्ख सकैत अछि। आकाशक बुंदतङ्ख ओकरा लेल आगक चिनगारी सन होइ छै। मुदा आई......।बकरी निस्तेज भङ्ख कङ्ख बुढियाक फाटक दिस देखि रहल छल। जेना गला बाकुरलागी गेल होइ। बुढियाक बर्दास्त नइ भेलै। भनभनाइत -भनभनाइत ओसारा परि बोरा बिछा देलकैआ फटाल सऽ फाटक बंद कङ्ख लेलक आ ऊखडि पर बैस बकड-बकड करय लागल।बकरी छडपि कङ्ख ओइ पर जा बैसल।वर्षा में बकरी भीजि चुकल छल। ओकरा थान सङ्ख टपर-टपर पाइन चुबि रहल छल।एक दिन नीक समय जरुर एतै। हमर बधा सबकङ्ख तङ्खबेची देलकै, ऊ सब तङ्खदोसरि ठामि चलि गेल। मुदा ओकरा लेल त इहे मडैया आश्रय छैक। बकरी नीक दिनक आस में डूबल छल।रहमतक घर सङ्ख रस्सी-पगहा तोडि क आबक समय बकरी कऽ या विश्र्वास छलै। हमरेलेल हरभंगनि माय जिबैत अछि । बकरी मरितो दम तक अहि ठामि रहय चाहै छल, इबुढिया कङ्ख मालूम कतअ छलै। अई ठामि कङ्ख घासि -फुसि उपजै छै सङ्ख ओकरेलेल। जखन धरि माई फाटक नइ खोलतै अहि ठामि ठाडि रहब। छाता, लाठी लङ्ख कङ्खजेहिना माई मारऽ ऐतै पिठि ओइर देबै। पिठि केना ओडतै इ बकरिक बढिया सङ्खबुझल छलै।रहमत कँ घर सँ जे रस्सी -पगहा तोइर क भागल छल ऊ ओकरा गर्दनें में छलै।एहि बीच बुढिया घर सँ जेखन निकलल तँ अचरज में पडि गेल।ओकरा जेखन रहमतक बेटा पकरि कऽ लऽ जाइत छलै तखने भागि आबक चाहि। दु दिनदेर भऽ गेल छलै ई ओकरा लाजक बात बुझाइत छलै। दाहिना पैर पटकि कऽ बुढियाक नजर अपना दिस करौलक।बकरिक देखी हरभंगनिक मन कतौ दिग-दिगंत में विचरण करय लागल छलै।बुढिया खुंटा-पगहा लङ्ख बकरी कङ्ख खुटेरी एलै। एक लोटा पानि लङ्ख कङ्ख मुंह रगडि- रगडि कङ्ख धोब लागल।शरीर परि एक टा चदरि राखि कहीं निकलि गेल।किछु समय बाद बिलास एक टा साइकिल लऽ बुढियाक पाछू-पाछू अंगना में घुसल।साइकिलक कैरियर पर दु टा कटहरक ठारि राखि देलकै आ ओइ में बकरीक रस्सीबान्हि देलक। साइकिलक चक्का धीरे-धीरे घुमय लागल। बकरी कटहरक पात नोचैतसाइकिलक पाछू चलऽ लागल। बुढिया आकाशक दिस मुंह कऽ कऽ हाथ दुनु जोरि कबाजल - इ आब गेल। एम्हर रहमत बकरीक अपना दारवाजा दिस अबैत देख बपराहटतोडय लागल। बेटा कऽ बिलासक संग लगा बकरी कऽ बैरंग आपिस कय देलकै। बुढिया पैसा-कौडिक चिंता में डूबल छल। अहि बीच पैसा मांगए ला आबि गेलै।तकिया तर में जांतल पाई! तकिया तरक जातल पाई कहियो बधा नई दैत छै।हरभंगनि बुढिया कऽ इ बुझल छलै। जिंदगीक तजुर्बा बुढिया कऽ इ बात बढियासऽ बुझा देने छलै। पंडित कऽ बेमार भेलाक बाद बुढिया बडा जतन सऽ दु-चारिटा पाई रखने छल। सब जमा पंडितक पेटक दर्द में खर्च भ गेल छलैक ,आ ओकराबादो चार आदमी कंधा पर उठा कऽ पंडित कऽ श्मशान घाट पहुंचैने छलै। आ ओकरसब पोथि -पतरा कङ्ख नदी में सेहो भसा देने छलै। इ सब केना पंडितक पाछूचइल गेल छलै, इ सब लोक देखने छलै। मुदा बुढियाक संजोगल पाई पंडितक जान केपाछु केते लागल छलै, इ केकरो बुझल नई छलै। एकर कोनो सबूतो त ओकरा पास नईछै आ नई छै पंडितक कोनो धएल-उसारल चीज। पाइ अपना पाछू सबूत नई छोडै छै!माथ पर हाथ धए बुढिया केथरी पर बैसल रहल। एहि बीच केकरो आब कऽ आहटबुझैलै। एइ बकरी कऽ मारि कऽ खाए के अई। बुढियाक कान में इ आवाज सुनाईदेलकै। बुढिया घरक पछुआरि में बकरीक खुटेरि अइली।रहमतक बेटा चिकरल, अपन बकरी राखु ,हमर पाई दिअ। साथ में दस टका सूद आ दुदिनक दस टका बटखर्चा सेहो।कपारि परि हाथ राखि बुढिया गेरुआ तर हाथ देलक। चालिस टका खर्च भ गेलै आदुकानक नमक-तेल आ हुक्का -पिनि कङ्ख बाकि छै से अलग।कि कएल जाए? बकरीक मुंह सुखाएल जाइत छलै । पुठा निकलि गेल छलैबुढिया रहमतक बेटाक हाथ-पैर पकरि कङ्ख केहुना चालिस रुपया आगू महिना देवके लेल आग्रह करय लागल। रहमतक बेटा गरजलै। ज्यों आगू महिना देव त चालिसनै पचास लागत। रहमतक बेटा चलि गेल।बिलास वोहि ठामि केथरी पर बैसी गेल। मुंह सुखाइत जाइ छलै। माय सङ्ख नून-पाइन मंगलक। खर-पात सङ्ख चुल्हा फूंकि बुढिया पाइन गरम केलक आ एक बाटीचाय बिलासक हाथ में थमौलक।बकरी हरभंगनिक तेज चलैत सांसक आवाज सुनि सोचै लागल -किछु करक चाही, मायकहाथ में किछु पाई आनक चाहि। इ सोचि घर सङ्ख बाहर भ गेल। बुढियाक लेल फेर गाभिन भेल।आब ओकरा बधा कङ्ख बेचि कङ्ख बुढिया किछु पाई कमा सकैए।मुदा बुढिया उदास छल। देह पर एक टा कपडा राखि दिन भरि उदास बैसल रहल।भात बना क बुढिया अपनों खाइत छल आ किछु बसिया भात बकरी के लेल राखि दैत छल।किछु दिन सङ्ख बुढियाक आंख कचिआइत छलै। सांझ होइते प्रायः देखाइयो नई दैछलै। सांझ होइते जेहिना तेरेगन निकलै बुढिया तुलसिक चउरा पर दीया जरयलागय। दीपक लौ जेना जरै , बुढियाक ह्रदय ओहिना कपैत छल। आब लोककनुकसानक भारपाई लेल त किछु उपाय नइ छलै। तैं कान पतने आवाज अकानईत छल।पडोसक उपराग वा गालि -गलौज सुनैत छल। नइ सुनवाक आओर उपाये कि छलै?असहायबुढियाक धीरज राखय कऽ शक्ति खत्म भ गेल छलै।अपन तऽ संतान नई छलै आ पंडितककारणे कहिओ गामक लोकनिक उपराग वा उपहास सुन कङ्ख मौका नई मिललै। लेकिन इबकरी लेल , जीवनक अंतिम बेला में हरभंगनि बुढिया कङ्ख कि कि नङ्ख सहन करयपडैत छै ।बुढियाक भतीजा सुझाव देने छलै- बकरी कङ्ख कसैयाक हाथे बेचि दी लेकिनबुढियाक लेल इ संभव कतङ्ख छलै। बाद में ओकरे कहब छलै जे एकर मांसो केखेतै? आखिर बुढिया जे भ गेलै।हरभंगनि के महसूस होबए लागल छलै जे इ बकरी नइ अछि, इ त देहक पीडा अछि। मरए काल धरि एकरा लए कऽ एहिना भोग के अहि।पहिने के मरतै? बकरी या ओ? ज्यों ऊ मरि जेतै त बकरी कङ्ख केयो नई छोडतै । आ नारकीय यातना जकां तिल -तिल कङ्ख मारतै। कारण कि गामक लोक त ओहने छै।मार - काट करए बला। आ ज्यों पहिने बकरी मइर गेल। आह! आह! एहन यंत्रणाभोगङ्ख के केकरो मौका नई भेटै।पंडित कङ्ख स्वर्ग गेलाक बाद । .।दुआरिओ नई बचल छलै आ तुलसीक पात झडि-झडि क खैस रहल छलै आ सखुआक ठारि सबटुटि-टुटि क खैस पडल छल। लकडी चुन जाय त खाली हाथ बुढिया आपिस होइत छल । बटइया पर जे खेत देने छलै ओइ में सङ्ख चारो आना एकरा कहां मिललै। धानककोठि में मुस सब बधा द देनै छलै । अई सबहक ओकरा चिंता कहां छलै।पडोसनिक घर जेहिना हुक्का पिब ल जाई छल सब उ नटिन बकरी कङ्ख उपरागसुनाबए लागै। पसारल चदरि चिबा गेल, हमरा छोटका बेटा जाइत रहै पाछू सङ्खसिंघ मारि देलकै, हंसक दरबा में जा कङ्ख ओकरा खहेटैत रहै छै , आ फूल-पानके त तोहर बकरी दुश्मन छै। कियो ओकरा उपराग द क बिना सतौने नई छोडै।खिन्न मन सऽ हरभंगनि घर घुमि जाए।गाभिन बकरी कऽ मारियो नई सकैत अछि । आ नइ भुखले छोडल जाइत छलै। बुढियाकपारि पर हाथ राखि सोचैत छल कि बकरी आबि कङ्ख आंगनि में ठारि भ गेलै।बकरी कङ्ख टकटकी लगाए कङ्ख बुढिया देख लागल ।एहि अवस्था में कौआ -चुनमुन ओकरा आगू-पाछू चक्कर लगाब लागल छलै।चिडियां-चुनमुन कहिओ ओकरा पासो नई फटकल छलै, कारण कि केकर एहन हिम्मत छलै जे पासमें आबए के हिम्मत करितै। आई धरि कुकुर वा बिलाई कहिओ बुढियाक आंगन मेंघुसक हिम्मत नई केलकै।कुकुर सभ तङ्ख सोचै छल जे भौं-भौं करय सङ्ख कि फायदा ? अपन रास्ता पकडि लैत छल। आ चोर?पितरक दीया चोराबऽ आएल छल त ओकरा कि दुर्गति भेल छलै से त केओ नई जनैतअछि। बुढिया तुलसिक चउरा परि दीप राखि कङ्ख दीवारक आडि लङ्ख कङ्ख कपडाबदलैत छल कि तखने दीप खैस पडलै।बसात सङ्ख गिरलै कि केना सङ्ख बिना सोचने दीप लेल बुढिया विरक्त भ गेल।अचानक एक आवाज भेलै, जेना केओ खैस पडल होई। बकरिक चलऽ के आवाज साफ -साफआबि रहल छल।हरभंगनि के सब बात बुझा गेल छलै जे उ जानयङ्ख चाहैत छल।चोर-चोर कङ्ख हल्ला करैत आ बपराहट तोडैत बुढिया सडक दिस दौडल।लोक सभ जुटिगेल छलै। हं, वा तङ्ख कलिया मुंहे भरे गिरल पडल छल ।कलियाक केहुनी सऽखूनक पमार बहि रहल छलै।लगे में दीप गिरल छलैक। बुढिया आंखि फारिकङ्खओकरा देखि रहल छली।बकरी कतङ्ख गेलै?कलियाक लोक सभ कि ओकरा एहिना छोडि देतै। तँ बुढिया भीड के चिरैत चारु बगलबकरी कङ्ख खोजए लागल। लेकिन ऊ त कतौ नई छल।बाद में मचानक नीचा भेटल। तखनि धरि लोक सभ अपन-अपन घर चलि गेल छलाह।चोरक हाथ सङ्ख जे दीप खसल छल ओहिक तेल सभ सेहो ओहि ठाम उझला गेल छल।बुढिया क्लांत भङ्ख गेल छल।फेर सँ दीप जरैबाक शक्ति ओकर खत्म भऽ चुकल छलै।अन्हारे में बुढिया कङ्ख बुझा गेल छलै जे मचानक नीचा बकरी बसैल छै।भगवानक नाम स्मरण करैत बुढिया सुति गेल। आ एम्हर बकरियो टांग पसारि कङ्ख पडल छल।भोर में जखन फाटक खोलि बुढिया बाहरि आएल त देखैए जे आन दिनक तरहें मचानकतर में सङ्ख बकरी बाहरि नई आबि रहल अछि। ओकरा बाहर अनबाक लेल बुढियाहजारो बेर चेष्टा कऽ चुकल छल । बुढिया बकरिक बजबैत-ब भोर में जखन फाटकखोलि बुढिया बाहरि आएल त देखैए जे आन दिनक तरहें मचानक तर में सङ्ख बकरीबाहरि नई आबि रहल अछि। ओकरा बाहर अनबाक लेल बुढिया हजारो बेर चेष्टा कऽचुकल छल । बुढिया बकरिक बजबैत-बत्नी छली। जनेऊक सुति काटङ्ख के पुरान आदतछलै। ओहि में लागल रहय कि अचानक ओकरा मुंह से हंसी फुटि पडल छलै।छी!छी! एहनो कतौ बकरी भेलङ्ख। राति कलियाक केहुनी फोडि क मारि खाए कङ्खडर सङ्ख ओहि में सङ्ख निकलवे नहि कएल। मचानक तरि में मुंह घुसा कऽ बुढियाबकरीक मुंह दुसङ्ख लागल।कतेक दिन भगवहि ? एक दिन तोडा कलिया छोडतौ नइ। इ बात कहबाक बाद बुढियाक्षुब्ध भङ्ख गेल छल।एतेक डरपोक बकरी नई अछि इ। आखिर इ एखन गाभिन छैक। मारिक डर स एखन बांचिरहल अछि। ममत्व धर्म कङ्ख पालन कए रहल अछि।बुढिया दृढ विश्र्वास देखौलक। गर्भधारण कङ्ख ओकरा अनुभव नइ छैक लेकिनममत्वक अनुभव त ओकरा भेल छैक।बुढिया उठि क भीतरि गेल आ एक कटोरी पानि आनि मचानक तर में ठेलि देलकै।हरभंगनिक दायित्व बढि गेल छलै। गर्भवती बेटीक प्रति दायित्व जेना। कनिकोकाल नइ देखै तङ्ख बुढिया बाहरि निकलि पडय। पडोसक लोकिनक प्रति तीक्ष्णदृष्टि। केकरो अरगनि पर राखल कपडा त नइ चिबैलकै। वा केकरो घर सङ्ख गारिदेबक आवाज त नई आबि रहल छै।बुढियाक आंखि जेते दूर देखि सकै छलै, तकैत छल।बाट में खसल कटहरक पात आनि ओकरा दै छलै। देह हसोथि कङ्ख ओकरा समझबै छलैजे उद्दडंता छोरि दे।पडोसक लोकनि सभङ्ख इ बुझि गेल छलै कि केतबो उपराग देबय सऽ ओकरा कोनोफर्क नहि परै छै। ऊ त केवल निर्विकार भङ्ख सुनैत रहै छै। पहिने जकां बकरीकङ्ख डांटि -दबारि आब केकरो कानि में कहां सुनाई दैत छै। पहिने तऽ खूबपिटबो करै आ दूर परती -परांत में खुटेरि अबै छलै। लेकिन आइ कालि इ सबकिछु नइ। खोइल देबङ्ख सङ्ख मटरगस्ती केलक आ मनभरि बदमासी केलाक बाद घरलौटि बुढियाक चरण में आबि कङ्ख बैस गेल। बुढिया देह हसोथि का पंखा झेल दैआ मनसा देविक गीत गाबि सुनाबै।आहा! कि दृश्य?गामक लोकनि के इ देखि आंखि फाइट जाइ। पर इ बात हरभंगिनी केबुझाइ । बकरियो बुझई। त दुनु सावधान।माय- बेटी दुनु गामक लोक सँ कटी कङ्ख रहए लागल छल।आइ पोखरि परि आबि कङ्ख बुढियाक मन उद्धेलित छलै। समय पूरा भङ्ख गेल छै।दु एक दिन में बधा द देतै। एहन समय में केयो जौं शत्रुता करतै त ओकरा किनई भ जेतै।बुढिया घरक लेल आपिस होबए लागल।ऐना पोखरि पर माछ मारैत बहुतों बेर देखने छलै। पगलादिया नदी में बहुतोबेर माछक उफान देखने छलै।ओ आपिस भङ्ख गेल।घरक फाटक खोलि कङ्ख बारी में साग तोडय चलि गेल। बकरी कङ्ख बार- बारबुझेने छलै जे घरक आसे -पास रहिहें। नइ, ऊ त कहीं घुमय चलि गेल।दुपहरियाक बेर हरभंगनिक किछु सुनाइ देलकै। डबराक भीडि पर किछु केराकडमखौर जमा केने रहैय। ओम्हरे सऽ आवाज आबि रहल छलै।बुढिया दउर मारलक। हं, हं ओतै बधा दए रहल अछि। बुढियाक आनंदक ठिकाना नइरहि गेल छलै। देखैत रहि गेल। उजरि-उजरि बधा। किन्तु बच्चाक माय कङ्ख किभेलै।बुढिया पडोसिक नाम लङ्ख कङ्ख चिचियाइत हल्ला कैलक। बकरी निस्तेज भङ्खचुकल छलै। बुढिया तकैत रहि गेल छल। ओकरा आंखि में आइ ऊ भाव नइ छलै।एक दू टा पडोसी दउर क आबि चुकल छलै। ऊ सब बधा कङ्ख उठा क बुढियाक हाथ मेंदेलकै। इ बात नइ छलै जे अहि सँ पहिने बुढिया कहियो बच्चा कङ्ख हाथ में नइलेने छल। परंच अहि बेर ओकरा सः अपन बच्चा जेना बुझाइत छलै।बुढियाक दुनु आंखि में लोर भरि गेल छलै। तखने कान में एक टा आवाज अयलै।हं,हं इ त ओकरे आवाज अहि। मेमिआइत नहि बल्कि एकदम स्पष्ट आवाज। स्वस्थ्यआवाज। कष्ट सङ्ख मुक्तिक आवाज। हं गे हमर माय, हं गे हमर बेटीहरभंगनि बुढियाक आवाज।बधा सँभ के छोडि बकरीक पास पहुंचि गेल छल।पछारि खा कङ्ख खइस पडल। हं यो अस्वस्थ्य यातना सङ्ख छुटकारा भेटि गेल।बुढिया ओकर देह आ माथ हसोथि देलकै। डबडबाएल आंखि, तरहथि सऽ पोछि आवाजदेलकै- गे हमर बुधी! बकरीक मुंह समान्य भ गेल।बुढिया बेसी जोरि सङ्ख बाजि देने छलै। पछुआरि सङ्ख ओकर भतीजी दबारलकै,अएं गे, तोरा आओर कोनो नाम नहि भेटलौ, एते दिन सङ्ख तोरा कोनो नाम नइभेटल छलौ, आइए मोन पडलौ।बकरीक लङ्ख कङ्ख उपराग सुनैत-सुनैत बुढिया अभ्यस्त भ चुकल छल।थेथरि जकां जीवन धरि समय कटैत रहल।पंडित जे संत्रास दङ्ख गेल छलै , ओकरा ई बकरिक सहारे एहि रंगहीन पृथ्वीपर जीवैत छल।